Lorem

Delete this widget in your dashboard. This is just an example.

Ipsum

Delete this widget in your dashboard. This is just an example.

Dolor

Delete this widget in your dashboard. This is just an example.
 
Showing posts with label LokKatha. Show all posts
Showing posts with label LokKatha. Show all posts

घंटीधारी ऊंट A Panchtantra Story

Sunday, June 9, 2013


एक बार की बात है कि एक गांव में एक जुलाहा रहता था. वह बहुत गरीब था. उसकी शादी बचपन में ही हो गई थी. बीवी आने के बाद घर का खर्चा बढना था. यही चिन्ता उसे खाए जाती. फिर गांव में अकाल भी पडा. लोग कंगाल हो गए. जुलाहे की आय एकदम खत्म हो गई. उसके पास शहर जाने के सिवा और कोई चारा न रहा.
शहर में उसने कुछ महीने छोटे-मोटे काम किए. थोडा-सा पैसा अंटी में आ गया और गांव से खबर आने पर कि अकाल समाप्त हो गया है, वह गांव की ओर चल पडा. रास्ते में उसे एक जगह सड़क किनारे एक ऊंटनी नजर आई. ऊंटनी बीमार नजर आ रही थी और वह गर्भवती थी. उसे ऊंटनी पर दया आ गई. वह उसे अपने साथ अपने घर ले आया.


घर में ऊंटनी को ठीक चारा व घास मिलने लगी तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई और समय आने पर उसने एक स्वस्थ ऊंट बच्चे को जन्म दिया। ऊंट बच्चा उसके लिए बहुत भाग्यशाली साबित हुआ। कुछ दिनों बाद ही एक कलाकार गांव के जीवन पर चित्र बनाने उसी गांव में आया। पेंटिंग के ब्रुश बनाने के लिए वह जुलाहे के घर आकर ऊंट के बच्चे की दुम के बाल ले जाता। लगभग दो सप्ताह गांव में रहने के बाद चित्र बनाकर कलाकार चला गया।
इधर ऊंटनी खूब दूध देने लगी तो जुलाहा उसे बेचने लगा। एक दिन वहा कलाकार गांव लौटा और जुलाहे को काफी सारे पैसे दे गया, क्योंकि कलाकार ने उन चित्रों से बहुत पुरस्कार जीते थे और उसके चित्र अच्छी कीमतों में बिके थे। जुलाहा उस ऊंट बच्चे को अपना भाग्य का सितारा मानने लगा। कलाकार से मिली राशी के कुछ पैसों से उसने ऊंट के गले के लिए सुंदर-सी घंटी खरीदी और पहना दी। इस प्रकार जुलाहे के दिन फिर गए। वह अपनी दुल्हन को भी एक दिन गौना करके ले आया।
ऊंटों के जीवन में आने से जुलाहे के जीवन में जो सुख आया, उससे जुलाहे के दिल में इच्छा हुई कि जुलाहे का धंधा छोड क्यों न वह ऊंटों का व्यापारी ही बन जाए। उसकी पत्नी भी उससे पूरी तरह सहमत हुई। अब तक वह भी गर्भवती हो गई थी और अपने सुख के लिए ऊंटनी व ऊंट बच्चे की आभारी थी।
जुलाहे ने कुछ ऊंट खरीद लिए। उसका ऊंटों का व्यापार चल निकला।अब उस जुलाहे के पास ऊंटों की एक बडी टोली हर समय रहती। उन्हें चरने के लिए दिन को छोड दिया जाता। ऊंट बच्चा जो अब जवान हो चुका था उनके साथ घंटी बजाता जाटा।
एक दिन घंटीधारी की तरह ही के एक युवा ऊंट ने उससे कहा 'भैया! तुम हमसे दूर-दूर क्यों रहते हो?'
घंटीधारी गर्व से बोला 'वाह तुम एक साधारण ऊंट हो। मैं घंटीधारी मालिक का दुलारा हूं। मैं अपने से ओछे ऊंटों में शामिल होकर अपना मान नहीं खोना चाहता।'
उसी क्षेत्र में वन में एक शेर रहता था। शेर एक ऊंचे पत्थर पर चढकर ऊंटों को देखता रहता था। उसे एक ऊंट और ऊंटों से अलग-थलग रहता नजर आया। जब शेर किसी जानवर के झुंड पर आक्रमण करता हैं तो किसी अलग-थलग पडे को ही चुनता हैं। घंटीधारी की आवाज़ के कारण यह काम भी सरल हो गया था। बिना आंखों देखे वह घंटी की आवाज़ पर घात लगा सकता था।
दूसरे दिन जब ऊंटों का दल चरकर लौट रहा था तब घंटीधारी बाकी ऊंटों से बीस क़दम पीछे चल रहा था। शेर तो घात लगाए बैठा ही था। घंटी की आवाज़ को निशाना बनाकर वह दौडा और उसे मारकर जंगल में खींच ले गया। ऐसे घंटीधारी के अहंकार ने उसके जीवन की घंटी बजा दी।

सीखः -- जो स्वयं को ही सबसे श्रेष्ठ समझता हैं उसका अहंकार शीघ्र ही उसे ले डूबता है।

चापलूस मंडली

Monday, October 1, 2012

जंगल में एक शेर रहता था। उसके चार सेवक थे चील, भेडिया, लोमडी और चीता। चील दूर-दूर तक उडकर समाचार लाती। चीता राजा का अंगरक्षक था। सदा उसके पीछे चलता। लोमडी शेर की सैक्रेटरी थी। भेडिया गॄहमंत्री था। उनका असली काम तो शेर की चापलूसी करना था। इस काम में चारों माहिर थे। इसलिए जंगल के दूसरे जानवर उन्हें चापलूस मंडली कहकर पुकारते थे। शेर शिकार करता। जितना खा सकता वह खाकर बाकी अपने सेवकों के लिए छोड जाया करता था। उससे मजे में चारों का पेट भर जाता।

एक दिन चील ने आकर चापलूस मंडली को सूचना दी  “भाईयो! सडक के किनारे एक ऊँट बैठा हैं।”

भेडिया चौंका  “ऊँट! किसी काफिले से बिछुड गया होगा।”

 चीते ने जीभ चटकाई  “हम शेर को उसका शिकार करने को राजी कर लें तो कई दिन दावत उडा सकते हैं।”

लोमडी ने घोषणा की  “यह मेरा काम रहा।”

लोमडी शेर राजा के पास गई और अपनी जुबान में मिठास घोलकर बोली  “महाराज, दूत ने खबर दी है कि एक ऊँट सडक किनारे बैठा हैं। मैंने सुना हैं कि मनुष्य के पाले जानवर का मांस का स्वाद ही कुछ और होता हैं। बिल्कुल राजा-महाराजाओं के काबिल। आप आज्ञा दें तो आपके शिकार का ऐलान कर दूं?”

शेर लोमडी की मीठी बातों में आ गया और चापलूस मंडली के साथ चील द्वारा बताई जगह जा पहुंचा। वहां एक कमजोर-सा ऊँट सडक किनारे निढाल बैठा था। उसकी आँखें पीली पड चुकी थीं। उसकी हालत देखकर शेर ने पूछा “क्यों भाई तुम्हारी यह हालात कैसे हुई?”

ऊँट कराहता हुआ बोला  “जंगल के राजा! आपको नहीं पता इंसान कितना निर्दयी होता हैं। मैं एक ऊँटो के काफिले में एक व्यापार का माल ढो रहा था। रास्ते में मैं बीमार पड गया। माल ढोने लायक नहीं उसने मुझे यहां मरने के लिए छोड दिया। आप ही मेरा शिकार कर मुझे मुक्ति दीजिए।”

ऊँट की कहानी सुनकर शेर को दुख हुआ। अचानक उसके दिल में राजाओं जैसी उदारता दिखाने की जोरदार इच्छा हुई। शेर ने कहा  “ऊँट, तुम्हें कोई जंगली जानवर नहीं मारेगा। मैं तुम्हें अभय देता हूं। तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे साथ ही रहोगे।”

चापलूस मंडली के चेहरे लटक गए।

भेडिया फुसफुसाया “ठीक है। हम बाद में इसे मरवाने की कोई तरकीब निकाल लेंगे। फिलहाल शेर का आदेश मानने में ही भलाई हैं।”

 इस प्रकार ऊँट उनके साथ जंगल में आया। कुछ ही दिनों में हरी घास खाने व आरम करने से वह स्वस्थ हो गया। शेर राजा के प्रति वह ऊँट बहुत कॄतज्ञ हुआ। शेर को भी ऊँट का निस्वार्थ प्रेम और भोलापन भाने लगा। ऊँट के तगडा होने पर शेर की शाही सवारी ऊँट के ही आग्रह पर उसकी पीठ पर निकलने लगी लगी वह चारों को पीठ पर बिठाकर चलता।

एक दिन चापलूस मंडली के आग्रह पर शेर ने हाथी पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य से हाथी पागल निकला। शेर को उसने सूंड से उठाकर पटक दिया। शेर उठकर बच निकलने में सफल तो हो गया, पर उसे चोंटें बहुत लगीं। शेर लाचार होकर बैठ गया। शिकार कौन करता? कई दिन न शेर  ने कुछ खाया और न सेवकों ने। कितने दिन भूखे रहा जा सकता हैं?

लोमडी बोली  “हद हो गई। हमारे पास एक मोटा ताजा ऊँट हैं और हम भूखे मर रहे हैं।”

चीते ने ठंडी साँस भरी  “क्या करें? शेर ने उसे अभयदान जो दे रखा हैं। देखो तो ऊँट की पीठ का कूबड कितना बडा हो गया हैं। चर्बी ही चर्बी भरी हैं इसमें।”

 भेडिए के मुंह से लार टपकने लगी  “ऊँट को मरवाने का यही मौका हैं दिमाग लडाकर कोई तरकीब सोचो।”

लोमडी ने धूर्त स्वर में सूचना दी  “तरकीब तो मैंने सोच रखी हैं। हमें एक नाटक करना पडेगा।”

सब लोमडी की तरकीब सुनने लगे। योजना के अनुसार चापलूस मंडली शेर के पास गई। सबसे पहले चील बोली  “महाराज, आपको भूखे पेट रहकर मरना मुझसे नहीं देखा जाता। आप मुझे खाकर भूख मिटाइए।”

 लोमडी ने उसे धक्का दिया  “चल हट! तेरा मांस तो महाराज के दांतों में फँसकर रह जाएगा। महाराज, आप मुझे खाइए।”

 भेडिया बीच में कूदा  “तेरे शरीर में बालों के सिवा हैं ही क्या? महाराज! मुझे अपना भोजन बनाएँगे।”

अब चीता बोला  “नहीं! भेडिए का मांस खाने लायक नहीं होता। मालिक, आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कीजिए।”

 चापलूस मंडली का नाटक अच्छा था। अब ऊँट को तो कहना ही पडा  “नहीं महाराज, आप मुझे मारकर खा जाइए। मेरा तो जीवन ही आपका दान दिया हुआ है। मेरे रहते आप भूखों मरें, यह नहीं होगा।”

चापलूस मंडली तो यहीं चाहती थी। सभी एक स्वर में बोले  “यही ठीक रहेगा, महाराज! अब तो ऊँट खुद ही कह रहा हैं।”

चीता बोला  “महाराज! आपको संकोच हो तो हम इसे मार दें?”

 चीता व भेडिया एक साथ ऊँट पर टूट पडे और ऊँट मारा गया।

 सीखः चापलूसों की दोस्ती हमेशा खतरनाक होती हैं।

Lorem

Please note: Delete this widget in your dashboard. This is just a widget example.

Ipsum

Please note: Delete this widget in your dashboard. This is just a widget example.

Dolor

Please note: Delete this widget in your dashboard. This is just a widget example.