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तुम बसी हो कण कण अंदर माँ

Wednesday, December 17, 2014


तुम बसी हो कण कण अंदर
तुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में |
हम मूढमति हम अनजाने माँ सार, तुम्हारा क्या जाने || तुम बसी.......





तेरी माया को ना जान सके, तुझको ना कभी पहचान सके |
हम मोह की निंद्रा सोये रहे, माँ इधर उधर ही खोये रहे |
तू सूरज तू ही चंद्रमा, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
हर जगह तुम्हारे डेरे माँ, कोइ खेल ना जाने तेरे माँ |
इन नैनों को ना पता लगे, किस रुप में तेरी ज्योत जगे |
तू परवत तु ही समंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
कोइ कहता तुम्ही पवन में हो, और तुम्ही ज्वाला अगन में हो |
कहते है अंबर और जमी, तुम सब कुछ हो हम कुछ भी नहीं
फल फुल तुम्ही तरुवर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
तुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में |
हम मूढमति हम अज्ञानी, माँ सार तुम्हारा क्या जाने ||

सावन की रुत हैं आ जा माँ

Wednesday, October 3, 2012

सावन की रुत हैं जा माँ
सावन की रुत हैं जा माँ, हम झूला तुझे झूलायगें
फूलों से सजायेंगे तूझको, मेंहदी हाथों में लगायेंगे....
सावन की रुत हैं जा माँ……





कोई भेंट करेगा चुनरी, कोई पहनायेगा चूडी,
माथे पे लगायेगा माँ, कोई भक्त तिलक सिंदूरी,
कोई लिये खडा है पायल, लाया है कोई कंगना,
जिन राहों से आयेंगी माँ तू भक्तों के अंगना,
हम पलके वहाँ बिछायेंगे ...
सावन की रुत हैं जा माँ……
माँ अंबुवा की डाली पे झूला भक्तों ने सजाया,
चंदन की बिछाई चौकी, श्रद्धा से तूझे बुलाया,
अब छोड ये आखँ मिचौली, जा मैया भोली,
हम तरस रहे है कब से सुनने को तेरी बोली,
कब तेरा दर्शन पायेंगे ....
सावन की रुत हैं जा माँ……
लाखों है रुप माँ तेरे चाहे जिस रुप में जा,
नैनों की प्यास बुझा जा बस एक झलक दिखला जा,
झूले पे तुझे बिठा के तूझे दिल का हाल सुनाके,
फिर मेवे और मिश्री का तुझे प्रेम से भोग लगाके
तेरे भवन पे छोड के आयेगे ......
सावन की रुत हैं जा
सावन की रुत हैं जा माँ, हम झूला तूझे झूलायगें हैं
फूलों से सजायेंगे तुझको, मेंहदी हाथों में लगायेंगे....
सावन की रुत हैं जा

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