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चीन की सीमा पर और लड़ाकू विमानों की होगी तैनाती

Wednesday, June 12, 2013

चीन के खिलाफ वर्ष 1962 की जंग में मिली शिकस्त से सबक लेते हुए भारत ने अपनी पूर्वोत्तर सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत बनाना शुरू कर दिया है. वायु सेना प्रमुख एनएके ब्राउन ने जोर देकर कहा, ‘यदि 1962 के युद्ध में वायुसेना ने आक्रामक भूमिका निभाई होती तो इसका परिणाम कुछ दूसरा ही देखने को मिलता. भविष्य में वायु सेना अग्रणी भूमिका में होगी.’ 





उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में भारत-चीन युद्ध को 50 वर्ष पूरे हुए हो चुके हैं। 1962 के युद्ध के दौरान आईएएफ के विमानों को मुख्यत: परिवहन के तौर पर ही इस्तेमाल किया गया था. एयर चीफ मार्शल ब्राउन ने कहा, ‘मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि भविष्य में ऐसी कोई सीमित भूमिका नहीं होगी. वायु सेना आगे से हर क्षेत्र में हर काम के लिए अग्रणी भूमिका में होगी.’ 


उन्होंने कहा कि कि भविष्य के लिहाज से वायुसेना अब पूर्वोत्तर में पहले की तुलना में अधिक मजबूत स्थिति में है. पूर्वी क्षेत्र में दो और सुखोई स्क्वाड्रनों को तैनात करने की
तैयारी है.


गौरतलब है कि इस समय दो सुखोई स्क्वाड्रन तेजपुर और चबाबुआ ((दोनों असम)) में तैनात हैं.
वायु सेना प्रमुख ने बताया, ‘हम सुखोई के चार और स्क्वाड्रनों की तैनाती करने जा रहे हैं, इनमें से दो स्क्वाड्रन पूर्वी क्षेत्र में तैनात किए जाएंगे.





इस तैनाती से ज्यादा कुछ नहीं तो चीन के आक्रामक वक्तव्यों पर इससे एक हलके से प्रतिरोध की आशा तो की ही जा सकती है.

ओडिशा में पृथ्वी-2 का सफल परीक्षण

चांदीपुर. भारत ने अपनी मिसाइल क्षमताओं को बढ़ाते हुए आज यहां एक परीक्षण रेंज से परमाणु संपन्न पृथ्वी-2 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया जो 350 किलोमीटर दूरी तक प्रहार कर सकती है.





 चांदीपुर में एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) के तृतीय परिसर से एक मोबाइल लॉन्चर के माध्यम से सुबह करीब 9:07 बजे सतह से सतह पर प्रहार करने वाली मिसाइल का परीक्षण प्रक्षेपण किया गया.



 अत्याधुनिक पृथ्वी मिसाइल देश के प्रतिष्ठित एकीकृत निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम (आईजीएमपीडी) के तहत विकसित पहली बैलिस्टिक मिसाइल है और इसमें 350 किलोमीटर दूरी तक प्रहार करने के साथ 500 किलोग्राम परमाणु और परंपरागत दोनों तरह के वारहैड्स ले जाने की क्षमता है। सशस्त्र बलों में पहले ही शामिल की जा चुकी कम दूरी की इस अत्याधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण सेना की ओर से उपयोग के समय किया गया परीक्षण था और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने इस पर नजर रखी

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